प्रज्ञा पुराण कथा क्या है ? :
किसी भी अच्छी बात को सिखाने-बताने के लिये कथा-कहानियों का आश्रय लिया जाता है ।
हमारे पूर्वज ऋषियों ने १८ पूराण लिख कर वेद-उपनिषदों की शिक्षाओं को पुराणों के रूप में उतारा है ।
परम पूज्य गुरुदेव पं श्री राम शर्मा आचार्य जी ने भी व्यास जी की तरह १९ वां पुराण लिख दिया है जिसमें समझाया है कि ईश्वर पुत्र होने पर भी मनुष्य क्यों दुःखी रहता है, उस दुःख को कैसे दूर कर सकता है। पुराण के अनुसार आचरण करने से मानव मे देवत्व एवं धरती पर स्वर्ग आयेगा।
कथा कराने में कितना समय लगता है ?
कथा को यदि सार्वजनिक रूप से दृष्टान्त सहित समझाने का आयोजन किया जाय तो एक माह भी लग सकता है।
किन्तु प्रायः सात - आठ दिनों में इसे निम्न प्रकार सम्पन्न कर लेते है।
लोक कल्याण(प्रथम) खण्ड - २ दिन
महामानव-देवमानव (द्वितीय) खण्ड - २ दिन
परिवार (तृतीय) खण्ड - २ दिन
देव संस्कृति (चतुर्थ) खण्ड - २ दिन
प्रज्ञा पुराण कथा कौन करा सकता है ? कब और कहां करा सकता है ? कौन कह सकता है ?
यही प्रश्ननारद मुनि जी ने भगवान विष्णु से एक कथा में पूछा था।
प्रश्न के ऊत्तर में भगवान नें कहा कि - जिसमें श्रद्धा और विश्वास हों, जिस किसी को अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना हों और जो पाप मुक्त होना चाहता हो वह भक्त इस कथा को कहीं भी अवकाश (फुर्सत) के क्षणों में कथा करायें और सुने।
कोई भी विद्यावान - पढा लिखा व्यक्ति जो कथा को रोचक ढंग से, दृष्टान्तों के साथ सुना सकने में सक्षम हों और स्पष्ट वाणी वाला व्यक्ति कथा कह सकता हैं।
प्रज्ञा पुराण कथा को गायत्री परिवार ने क्यों अपनाया है?
गायत्री परिवार का एक उद्देश्य यह भी है- धर्म तंत्र से लोक शिक्षण, इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु इसे अपनाया हैं।